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क्षणिकाएं – १४ (१) जीवन में पतझड़ जब तक न आए नए फूल पत्ते फिर कैसे मुस्कुराएं शरद ऋतु जब तुमको सताए समझो अगले मोड पे बसंत खड़ा है बाहें फैलाए।। ...